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नानी का घर ❤️

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नानी का घर यादों की पुरानी एल्बम की तरह है, और यादें एक मिठाई के डिब्बे की तरह होती हैं, जिसे एक बार खोलने पर, आप सिर्फ एक टुकड़ा नहीं खा सकते, बल्कि पूरा डिब्बा खत्म कर देते हैं।  वो प्यार से बार-बार “मेरी रानी बेटी” पुकारना, फिर ढेरों पिन्नियाँ बनाकर “कैसी बनी हैं बेटा?” दुलारना। मेरी सेहत की चिंता में दूध में चुपके से बादाम मिलाना, अचारों में अपने प्यार का स्वाद चुपचाप घोल जाना। ये हैं नानी के असीम स्नेह के अनकहे किस्से, हर बार गर्मियों की छुट्टियाँ लातीं उन्हीं के हिस्से। नानी के घर जाने का इंतज़ार बेसब्र कर जाता, कैलेंडर में दिन गिनना दिल में उल्लास जगाता। ट्रेन रुकते ही गंगानगर की मिट्टी महका देती थी मन, बचपन की यादें लौटतीं, जैसे लौट आए हर क्षण। पर नानी से मिलने की जो ललक थी दिल में, वो एक पल को भी थमती नहीं थी इस सिलसिले में। घर पहुँचते ही आँखें खुद-ब-खुद भीग जाती थीं, गले लगते ही नानी से सुकून की बूँदें बरस जाती थीं। फिर भर आई आँखों से जब देखती उनका आँगन, दिल में उठती भावों की लहरें, करती थीं मन-मंथन। बचपन की वो मीठी कहानी, हर रात सुनाती थीं नानी, गुड़िया संग खेल खिलातीं, ...